Ratnakar Mishra

प्यार में आईटी-आईटी

मैंने एक कविता लिखी है। झूठ –झूठ 🤥 झूठा कही का!! 😠 सच्ची मैं लिखी है। ✍️ मैं नहीं मानती!! 😒 तुम्हे कंप्यूटर गेम से फुर्सत मिले तब न। 🎮 वैसे भी ये सब तेरे बस का नहीं है। 🤷‍♂️ अरे लिखी है, सुनो तो सही। 👂 “लोग इश्क़ में जान देने की बात करते…

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बिहारी अंदाज़: ‘टी’ की मिठास और ‘चाय-फाई’ का जुगलबंदी

बिहार की एक खासियत यह है कि वहाँ के लोग चाय को ‘चाय’ नहीं, बल्कि ‘टी’ कहते हैं। अब यह तो सच है कि चाहे आप इसे ‘चाय’ कहें या ‘टी’, इसके स्वाद में कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन बिहारियों का जज़्बा और उनकी अनोखी शैली यह दिखाती है कि वे हमेशा भीड़ से अलग…

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बदला: इतिहास का पलटाव

बदला, कभी नहीं भूलूंगा, वापस आऊंगा, यही कहूंगा। जो सहा है मैंने इस जहां में, वह सब मैं लौटाऊंगा।   ऐसा बदला, जो जमाना देखेगी, हर एक नजर, हर एक कहानी कहेगी। मैं अपने दम से ऐसा कर दिखाऊंगा, इतिहास भी कांप जाएगा, जब आऊंगा। दर्द जो मैंने पीया है घूंट-घूंट, अब उस दर्द का…

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बदला

एक 14 – 15 साल की लड़की ने अकेले 7 -8 लड़कों को धूल चटा दी। एक अनकहा किस्सा , लेकिन एक शख्स ने उसकी गिनती ठीक करते हुए धीरे से कहा, ” 7 -8 नहीं, पूरे 9 थे।” उसकी बात काटने की हिम्मत करने पर उसने उसे ऐसी खा जाने वाली नजरों से देखा…

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खो जाने का एहसास

पहाड़ों की ऊंचाइयों में, नदियों की ठंडी बहती धार, टेढ़े-मेढ़े रास्तों पे चलते हुए, मंज़िल का न कोई ठिकाना, न कोई इंतजार। प्रकृति के आँचल में, खो जाने की चाहत है, जहां यादों का बोझ न हो, सिर्फ पल भर का आराम है। जिंदगी का क्या, वो फिर मिले न मिले, इस पल में जिंदा…

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यादों के संग त्यौहार

त्यौहार की खुशबू, बचपन की याद, पापा के कंधे, माँ के हाथ का स्वाद। त्यौहार का मौसम, सब कुछ था खास, जीवन की आपाधापी में, वो रह गया पास। वो दिन जब सब साथ मिलकर हंसते, माँ के हाथ के बने खाने से दिल भरते। पापा की बातों में थी वो मिठास, त्यौहार की रातों…

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ज़िंदगी की नौकरी

नौकरी की इस दौड़ में, ज़िंदगी रह गई पीछे कहीं, ज़िंदगी जीने का जूनून था, अब तो बस कागज़ों में सिमटी है वहीं। समय का न मिलना, एक पुरानी कहानी बन गई, तन्हा रह गए हम, जैसे भीड़ में खोई ज़िंदगी की रवानी। सब कुछ होकर भी अकेले, ये कैसा है सिलसिला, पराया जगह काट…

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अंतरात्मा की लड़ाई: कलियुग का सत्य

यह कलियुग का युग है, अर्जुन का गांडीव थामे, धर्म-अधर्म की लड़ाई अब भी जारी है, अपने ही मन से है संघर्ष, यही है सच्चाई, इतिहास खुद को दोहरा रहा है, जैसे एक और लड़ाई। विजय-पराजय की इस घमसान में, कौन विजेता, कौन पराजित, कोई नहीं जानता, सारे दुर्योधन फिर खड़े हैं मैदान में, कर्ण…

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कैंपस की यादें

छोटा सा सपना आँखों में, जब घर छोड़ा था, हॉस्टल की दुनिया में कदम रखा, जब जीवन थोड़ा नया था। दोस्तों के संग मस्ती, हर दिन थी एक कहानी, गलतियाँ कीं और सीखा, जैसे मिली कोई निशानी। घूमना, लड़ना, हँसना और रोना, लड़की से प्यार, वो भी एकतरफा, था एक सपना सोना। बिना बात के…

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बेजान तस्वीर

सिर पर रूखे बालों का, था इक बेजान गुच्छा, सदियों से बना न दाढ़ी, चेहरा था बिखरा बेतरतीब। मूछें और दाढ़ी उगीं थीं, जैसे जंगल में बेढ़ब शाख, कपड़े जैसे धुले न हों, कभी जीवन की राह।   शरीर था सूखी टहनी, कड़क धूप से सना, बेजान हो गया था, ज्यों जीवन ने उसे छोड़ा।…

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