यह कलियुग का युग है, अर्जुन का गांडीव थामे,
धर्म-अधर्म की लड़ाई अब भी जारी है,
अपने ही मन से है संघर्ष, यही है सच्चाई,
इतिहास खुद को दोहरा रहा है, जैसे एक और लड़ाई।
विजय-पराजय की इस घमसान में,
कौन विजेता, कौन पराजित, कोई नहीं जानता,
सारे दुर्योधन फिर खड़े हैं मैदान में,
कर्ण जैसे महारथी भी स्वार्थ में खो गए हैं।
युद्ध की नियति ने पुनर्जन्म पाया,
हर जगह है संघर्ष, हर जगह है साया,
जरूरत है अब जागने की, समझने की बात,
अपने भीतर की लड़ाई से ही मिलती है राहत।
कृष्णा की बाणी आज भी गूंज रही है,
धर्म की राह पर चलने की सिख दे रही है,
युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है, ये सच मानो,
यह लड़ाई अब भी चल रही है, यही पहचानो।
समाज को संदेश, ये युद्ध अभी खत्म नहीं,
अपनी अंतरात्मा से युद्ध का सामना करो सही।
धर्म-अधर्म की राह पर हर कदम सोच समझकर रखना,
क्योंकि यही है युग का संदेश, अपने भीतर ही लड़ाई लड़ना।