छोटा सा सपना आँखों में, जब घर छोड़ा था,
हॉस्टल की दुनिया में कदम रखा, जब जीवन थोड़ा नया था।
दोस्तों के संग मस्ती, हर दिन थी एक कहानी,
गलतियाँ कीं और सीखा, जैसे मिली कोई निशानी।
घूमना, लड़ना, हँसना और रोना,
लड़की से प्यार, वो भी एकतरफा, था एक सपना सोना।
बिना बात के झगड़े, और फिर से मेल मिलाप,
जैसे बचपन की शरारतें, हर पल का कोई हिसाब।
समय ने उड़ान भरी, आई नौकरी की बारी,
वो हॉस्टल की यादें, बन गईं एक पुरानी क़िस्सागोई।
दोस्तों की याद, वो मस्ती भरे पल,
अब ऑफिस के काम में छुप गए हैं वो हलचल।
समय का मिलना अब एक सपना सा है,
वो बीते हुए पल, जैसे कोई खोया सा है।
लौट के आ जा, मन कहता है रोज़,
वो दोस्ती के दिन, जो बिछड़ गए, अब रह गए बस ख्वाब।
जीवन आगे बढ़ता गया, पर दिल पीछे ही रह गया,
छोटे-छोटे पलों में, वो पूरा संसार छिपा रह गया।
हॉस्टल से ऑफिस तक का सफर,
बता गया कि कैसे बदल जाता है जीवन का हर पल।