बेजान तस्वीर

सिर पर रूखे बालों का, था इक बेजान गुच्छा, सदियों से बना न दाढ़ी, चेहरा था बिखरा बेतरतीब। मूछें और दाढ़ी उगीं थीं, जैसे जंगल में बेढ़ब शाख, कपड़े जैसे धुले न हों, कभी जीवन की राह।   शरीर था सूखी टहनी, कड़क धूप से सना, बेजान हो गया था, ज्यों जीवन ने उसे छोड़ा।…

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