“गाँव की यादों में बसी जिंदगी”

गाँव का जीवन, वो मासूम कहानी,
जहाँ सुबह की धूप में मिलती थी रोटी,
पेड़ों की छांव में बचपन बीता,
और खेतों की मिट्टी में जिंदगी सजी।

गाँव था वो, जहाँ दिल की धड़कन,
कभी बैलगाड़ी की लय में थिरकन,
जहाँ हर गली में होती थी पहचान,
हर एक चेहरा था अपनों का निशान।

पर वक़्त ने बदला वो मंज़र,
हम निकले थे खोजने सपनों का सफ़र,
चंद सिक्कों की खनक में खो दिया अपनापन,
अब वो गाँव यादों में बसता है केवल।

शहर की चकाचौंध में खोए हैं हम,
लेकिन गाँव का वो सुकून कहाँ मिलेगा,
जहाँ धूल भी थी सोने से बढ़कर,
आज वो धूल भी हमसे रूठा हुआ है।

गाँव की गलियों में अब वो हंसी नहीं,
हर दरवाजे पर है उदासी की परछाई,
बूढ़ी आँखों में बस इंतजार है,
कि कब ये बेटा लौटेगा अपने गाँव की गली में।

हे रे भागती-दौड़ती जिंदगी,
कब थमेगी ये दौड़, और हम लौटेंगे,
अपने गाँव की मिट्टी में फिर से बसने,
जहाँ हर सांस में मिलती थी जिंदगानी।

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