बेकारी का अंधेरा

बेरोजगारी की आग में जल रहा मन, महंगाई की लहरों में डूब रहा जन। रोटी की भीख माँग रहा, आंसू बहा रहा, सपनों का महल, धीरे-धीरे ढहा रहा। किसान का दर्द, गहरा हो रहा है, मेहनत का फल, हाथ से छूट रहा है। धन-धान्य की बरसात में, वो रो रहा है, समाज और नेता, आँखें…

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